ज्ञानवापी मस्जिद

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ज्ञानवापी मस्जिद 

ज्ञानवापी मस्जिद वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर वाराणसी के प्रसिद्ध विश्वेश्वर मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर मंदिर के अवशेषों और मंदिर के ही मलबे से एक मस्जिद बना दी गई और यह ज्ञानवापी मस्जिद आज भी वहां पर खड़ी है और पूरा विवाद इसी पर है | 

औरंगजेब ने जब इस मंदिर को ध्वस्त कराया तब यह एक विशालकाय मंदिर था और तब इसे पूरी तरह ध्वस्त ना करके, ऊपर के हिस्से को लगभग लगभग गिरा दिया गया था और मंदिर के दीवारों और खंभो के सहारे ही एक मस्जिद का निर्माण कर दिया गया| जब एएसआई सर्वे  कर रही थी तब भी यह बात भी सामने आई थी कि दरअसल मंदिर को पूरी तरह से गिराया नहीं गया था बल्कि मंदिर के गुंबद के ऊपर एक और गुंबद का निर्माण कर दिया गया और उसे एक मस्जिद का स्वरूप प्रदान कर दिया गया था |  हम देखेंगे की ज्ञानवापी मस्जिद के दीवारों और खंभों में आज भी कई भगवान के या हिंदू मान्यताओं से संबंधित मूर्तियां या चित्र उकेरे हुए हैं|  मस्जिद के बेसमेंट में मंदिरों के टूटी हुई मूर्तियां व शिलाखंड  बेतरतीब रखे हुए हैं| चार तहखाने मे से एक तहखाना  तो पूरी तरह से मलवे से ही भरा हुआ था | कहा जाता है कि इस हिस्से का कब्जा पुलिस या सेना के हाथों में है | एएसआई के सर्वे के वक्त एक व्यास जी का तहखाना ही ऐसा तहखाना था जहां पर अभी भी काफी कुछ सुरक्षित था| फिर भी उनके कुछ  दरवाजे और ताले तोड़ दिए गए थे| वहाँ से एक तरफ जो रास्ता अंदर को जा रहा था, उसे ईट गारे से चुनवा दिया गया था| यानी कि रास्ता बंद कर दिया गया था| यह कहा जाता है कि वह रास्ता दरअसल ऊपर शिवलिंग तक पहुंचने का रास्ता था | यह सब बातें इसी तरफ इशारा करती हैं की जो लोग कहते हैं कि यह मस्जिद नहीं मंदिर था, उसमें सच्चाई प्रतीत होती है | फिर मस्जिद मे शिवलिंग का भी मिलना आश्चर्य पैदा करता है | भले ही इंतजामिया कमेटी इसे फव्वारा बताती रहे परंतु एक शिवलिंग जैसी आकृति का नंदी के मुख के बिल्कुल सामने और व्यास जी के तहखाना के लगभग ऊपर स्थित होना अपने आप में सारे सबूत इकट्ठा कर देता है कि यह मस्जिद मंदिर के ऊपर ही निर्मित हुआ था|

अंग्रेजों की काल के कुछ फोटोग्राफ देखने से मन में कई सवाल पैदा होते हैं| जैसे की जिसे हम मस्जिद कह रहे हैं, उस मस्जिद में नंदी का क्या काम? नंदी के बगल में एक मूर्ति के स्थित होने का क्या काम? मस्जिद के अंदर एक कुआं है जिसे ज्ञानवापी कुआ भी कहा जाता है| मस्जिद में कुएं का क्या काम और फिर किसी भी मस्जिद का नाम हिंदुओं के संस्कृत के उच्चारण से होना क्या आपको अजीब नहीं लगता| जरा सोचिए कि भारत में किसी मस्जिद का नाम उस मंदिर परिसर में स्थित एक कुएं के नाम पर होगा और यह भी अजीब है कि उस कुएं का पानी बगल के विश्वनाथ मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता होगा| 

ज्ञानवापी केस व व्यासजी का तहखाना 

व्यासजी का तहखाना ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी भाग में स्थित एक तहखाना  है, एक बेसमेंट में बना हुआ है, जहां भगवान आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग होने के साथ भगवान गणेश, भगवान विष्णु और हनुमान जी की प्रतिमाएं भी वहां पर मौजूद है और इस तहखाना को हिंदू पक्ष मूल मंदिर का गर्भ गृह मानता है | तो यह बड़ी बात यह है कि जो पूजा वहां हो रही है, वह मंदिर का गर्भगृह है और वहां पूजा अर्चना शुरू होना, दोबारा से 31 सालों के बाद, एक बहुत बड़ी घटना है | यह तहखाना करीब 40 वर्ग फीट के क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 7 फिट है और बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि वर्ष 1819 में जब भारत में अंग्रेजों का शासन था तब वाराणसी के तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने मस्जिद परिसर पर हिंदू पक्ष के दावे को सही माना था और कहा था कि यह जगह मुसलमानों को हिंदू पक्ष को दे देनी चाहिए| लेकिन तब इस आदेश के खिलाफ दंगे भड़क गए थे और अंग्रेजों ने इस मामले को शांत करने के लिए मस्जिद के तहखाना को हिंदुओं को दे दिया और भूतल यानी ग्राउंड फ्लोर को मुसलमानों को दे दिया और इस विवाद के बाद इस मस्जिद के बेसमेंट में हिंदू देवी देवताओं की हर रोज पूजा हुआ करती थी| लेकिन आज से 31 वर्ष पहले, वर्ष 1993 में जब मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उनकी सरकार ने पूजा पाठ को ही बंद करा दिया | हिंदू पक्ष का यह भी दावा है कि उसके पास ऐसे सबूत है, ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे यह साबित होता है कि इस मस्जिद के गर्भगृह  में वर्ष 1551 से पूजा हो रही थी, यानी जब मस्जिद भी नहीं थी उससे एक सदी पहले से इस स्थान पर पूजा के साक्ष्य आज हिंदू पक्ष के पास मौजूद हैं |

31 जनवरी की आधी रात में जो पूजा हुई वह किस तरीके की पूजा थी क्या क्या हुआ था? तहखाना के भीतर कोई स्थापित मूर्ति तो नहीं है | जो पुरानी मूर्तियां है या जो दीवारों पर बनी हुई आकृतियां हैं, उन्हीं की पूजा वहां हुई थी और सुबह भी नित्य पूजा के लिए श्रद्धालुओं के वहां जाने का दौर शुरू हो गया है| मंदिर ट्रस्ट की तरफ से अनुमति दे दी गई है कि वहां दक्षिणी छोर पर या वजूखाना के ठीक सामने या यू कहे कि नीचे तहखाना को खोल दिया गया है| 

ज्ञानवापी मंदिर 

ज्ञानवापी मंदिर दरअसल विश्वनाथ मंदिर था और यह विश्वनाथ मंदिर या विश्वेश्वर मंदिर के नाम से ही जाना जाता था | ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं  है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है| इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम ज्ञानवापी मस्जिद पड़ा | एक मान्यता यह है कि भगवान शिव ने यहां माता पार्वती को ज्ञान दिया था इसलिए इसे ज्ञानवापी कहा गया और तब से ही ज्ञानवापी परिसर हिंदू तीर्थ है| 

स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से यह कुआं बनाया था| कहते हैं कि कुएं का जल बहुत ही पवित्र है जिसे पीकर व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हो जाता है| ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान प्लस वापी, यानी ज्ञान का तालाब | ज्ञानवापी का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था |

मस्जिद के पीछे की दीवार हिंदू शैली में बनी हुई है जो कि एकदम मंदिर जैसी दिखती है| यह भी कहा जाता है कि मूल रूप से जब यह मंदिर रहा होगा तो यह पीछे की दीवाल ही मुख्य दरवाजे का भाग रहा होगा | हिंदू पक्षकारों का दावा है कि मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ दिया था और ऊपर से आशिंक रूप से मस्जिद का निर्माण करा दिया था| मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ज्ञानवापी परिसर में ही मां श्रृंगार गौरी यानी कि पार्वती माता, भगवान गणेश, हनुमान, विश्वेश्वर, नंदी की और कई देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी है| ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर घंटी की आकृतियां भी बनी हुई है कहीं श्री ओम आदि लिखे हुए हैं| वहीं मस्जिद की ओर मुंह किए हुए नंदी की विशाल मूर्ति भी है| ज्ञात रहे की नंदी का मुख हमेशा शिवलिंग की तरफ ही होता है | कहा जाता है की नंदी के प्रतिमा को नेपाल के राणा ने उपहार में दिया था| इस मंदिर के प्रतिमा के पास ही ज्ञानवापी कुआं है |

एक नक्शे के मुताबिक विश्वेश्वर मंदिर के दाएं ओर विश्वनाथ मंदिर बाएं ओर  महादेव दंडपान मंदिर और बीच में बैकुंठ नामक गुंबदगार छठ वाला एक हाल है| मस्जिद के विशाल गुंबद के शीर्ष पर एक उल्टा कमल कलश और आमलक है| स्कंद पुराण के काशी खंड के श्लोक में काशी नगर का महिमा मंडल किया गया है| काशी खंड के 34वें अध्याय में 36 37 38 और 39 वां श्लोक ज्ञानवापी के महत्व पर है | ज्ञानवापी काशी का मूल केंद्र है ऐसा बताया गया है|

कहा जाता है कि महाराज जयचंद्र ने सन 1170 से 1189 के बीच इस मंदिर को तैयार करवाया हुआ था परंतु ज्यादातर इतिहासकार मानते हैं कि करीब 2000 साल पहले यानी चौथी और पांचवी शताब्दी के बीच राजा विक्रमादित्य ने विश्वनाथ मंदिर बनवाया था | मंदिर किसने बनवाया था इसमें हमेशा से अलग-अलग मत रहे हैं| इस शिव मंदिर को विश्वनाथ और विश्वेश्वर कहते हैं जिसका अर्थ है इस समूचे ब्रह्मांड पर शासन करने वाला| लिंग पुराण में एक घटना का जिक्र है की काशी नगर के ऊपर आकाश में दानव एक शिवलिंग को खींच रहे थे तभी धरती से मुर्गे ने बांग लगाई तो राक्षसों ने सुबह होने के डर से शिवलिंग वहीं गिरा दिया|

भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे और इन हमलों में सबसे पहला हमला 11वीं शताब्दी में हुआ| उस समय गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन 1194 में काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला करवाया और इस हमले में प्राचीन मंदिर का शिखर टूट गया | कुतुबुद्दीन ऐबक मोहम्मद गौरी का सेनापति था| लेकिन बड़ी बात यह थी कि हमले के बाद भी लोगों ने मंदिर के मूल स्थान पर पूजा पाठ करना बंद नहीं किया | यानी मंदिर तो तोड़ दिया फिर भी पूजा पाठ होती रही| कुछ इतिहासकारों के मुताबिक उस वक्त की दिल्ली सल्तनत की राजकुमारी रजियात उद दीन ने 1236 से 1240 ईस्वी के बीच इस जगह को रजिया मस्जिद के तौर पर निर्माण करवाया| 1296 ईस्वी में एक गुजराती व्यवसायी ने इस मंदिर का जीणोद्धार कराया, ऐसा कई जगह लिखा मिलता है | हालांकि ईस्वी सन 1436 से 1458 के बीच के शासनकाल में बनारस के कई मंदिरों की तोड़फोड़ हुई| तब जौनपुर के सुल्तान, सुल्तान हुसैन शाह साकरी ने इस मंदिर को फिर से गिरा दिया| इसके बाद 16वीं शताब्दी(1585) में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया | राजा टोडरमल मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे| कुछ इतिहासकारों की यह भी दलील है की राजा टोडरमल ने अकबर के कहने पर ही इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया | हालांकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार महाराजा मानसिंह ने सन 1580-1585 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया | 

मैंने इस मंदिर का पुराना नक्शा एक न्यूज़ पेपर में देखा था जिसे व्यास जी ने संभाल कर रखा था| अगर हम उस नक्शे को समझें तो पाएंगे कि यह मंदिर एक विशालकाय राजमहल से कम नहीं था | यानी की यह मंदिर वाराणसी का एक केंद्र बिंदु था | इसके चारों तरफ उद्यान लगे हुए थे | मंदिर काफी सीढीयों से युक्त था और उसे देखने पर ऐसा प्रतीत होता था की इतिहास में यह मंदिर कभी कितना वैभवशाली रहा होगा| परंतु कहा जाता है कि जिस पर सभी की नजर होती है, उसे ही नजर भी लगती है| 

सन 1642 ( कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 1632) में शाहजहां ने इस मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आदेश पारित किया | हालांकि तब हिंदुओं ने भारी विरोध किया और मंदिर तोड़ा नहीं जा सका| फिर भी उस वक्त बनारस के कई मंदिर तोड़ दिए गए थे| वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया और मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही बचे हुए अवशेषों और मंदिर के ही मलबे से एक मस्जिद बना दी गई जिसे ज्ञानवापी मस्जिद का नाम दिया गया और यह ज्ञानवापी मस्जिद आज भी वहां पर खड़ी है और पूरा विवाद इसी पर है | कहा जाता है कि तब औरंगजेब ने कछवाहा राजपूतों को आगरा जेल से शिवाजी को भगाने में मदद करने के लिए उन्हें सबक सिखाने के लिए इस प्रसिद्ध मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवा दिया था | शिवाजी को तब हिंदू सम्राट कहा जाता था और औरंगजेब ने यह कृत्य करके हिंदुओं को नीचा दिखाया था | मंदिर को ध्वस्त करने के साल को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है| कुछ इतिहासकार मंदिर को ध्वस्त करने का साल 1669 बताते हैं तो कुछ इस 1678 बताते हैं| कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में रखें एक दस्तावेज के मुताबिक 8 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने बनारस के मंदिरों और स्कूलों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया था और इसके बाद सितंबर 1669 में इस काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया| हालांकि इस बात पर सभी एकमत है कि औरंगजेब ने ही इस मंदिर को ध्वस्त कराया था | औरंगजेब अपने समय में न सिर्फ इस मंदिर को बल्कि भारतवर्ष में हजारों मंदिरों को ध्वस्त कराया था| वह मुगल शासन का सबसे बर्बर और घिनौना शासक रहा है जिसने हिंदुओं को तंग करने के लिए जजिया कर तक भी लगा दिया| यानी अगर आप मुस्लिम धर्म से अलग कोई धर्म मानते हैं तो उसके एवज में आपको सरकार को कर देना होगा| मंदिर टूटने के बाद वाराणसी की बागडोर अवध के नवाब के पास चली गयी | मराठा शासक मल्हार राव होलकर ने भी 1742 में इस मस्जिद को ध्वस्त करके मंदिर बनाने का संकल्प लिया था परंतु अवध के नवाब के हस्तक्षेप के कारण वह इसमें सफल नहीं हो सके|

काशी विश्वनाथ मंदिर

इसके बाद वर्ष 1780 ( कुछ इतिहासकारों के अनुसार निर्माण वर्ष 1780 न होकर सन 1776 था) में मालवा संभाग या इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस ज्ञानवापी परिसर के साथ में एक नए मंदिर का निर्माण करवाया जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं| ऐसा माना जाता है की मंदिर को शास्त्र सम्मत तरीके से मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई और यह मंदिर जन्माष्टमी के दिन बनकर तैयार हो गया लेकिन यह मंदिर प्राचीन मंदिर का बस नकल मात्र है | यानी कि असल मंदिर तो आज भी बगल में ही स्थित है जो कि मस्जिद मे बदल दिया गया है | आज भी आप पाएंगे की काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद की दीवाल एक है| हालांकि रानी होलकर  द्वारा निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर अब भारत ही नहीं अपितु विश्व में भी अपनी एक पहचान रखता है | यह मंदिर आज भारत का सबसे चर्चित मंदिर भी है | बाद में बिरला जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण में एक नया विश्वनाथ मंदिर का निर्माण भी कराया है| यह मंदिर भी दर्शनीय है और काफी प्रसिद्ध है | यानी कि वर्तमान में वाराणसी में दो प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर हैं| हालांकि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित विश्वनाथ मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और वहां आज भी सैकड़ो पर्यटक नित्य आते हैं| काशी विश्वनाथ मंदिर को बेहतर दर्शनीय स्थल बनाने के लिए एक कॉरिडोर का भी निर्माण कराया गया है जो मंदिर से बनारस के सभी घाटों को एक सुगम रास्ता देता है|

ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास 

वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर विश्वनाथ मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया और मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही बचे हुए अवशेषों और मंदिर के ही मलबे से एक मस्जिद बना दी गई जिसे ज्ञानवापी मस्जिद का नाम दिया गया| ऐसा कहा जाता है कि मंदिर को ध्वस्त होने से बचाने के लिए बहुत से लोगों ने बलिदान दिया| हजारों की संख्या में नागा संन्यासी भी लड़ाई लड़े ताकि यह मंदिर न टूटे, लेकिन उनको भी काट डाला गया मुसलमान के द्वारा| इस प्रकार से मंदिर पर जबरदस्ती कब्जा किया गया|

इस ज्ञानवापी कुएं का चारों तरफ परिक्रमा करने के लिए एक आसान रास्ता बनाया दौलत राव सिंधिया की विधवा बीज बाई ने| उन्होंने कुए के चारों तरफ एक घेरा भी बनवाया और फिर उसके ऊपर से एक छत का आकार भी दिया जिसे ज्ञान मंडप कहा गया| यह कहा जाता है की ज्ञानवापी कुआं गंगा नदी से अंदर ही अंदर जुड़ा हुआ है और उसे एक पवित्र कुआं माना जाता है| अंग्रेजों के शासनकाल में यह बात भी सामने आई कि इसमें कई लोग आत्महत्या कर लेते हैं और इस कुएं को ऊपर तक कवर कर दिया गया ताकि लोग आत्महत्या ना कर सके| हालांकि यह बात विवादित है|

18 वीं शताब्दी में जब अंग्रेजों ने नवाबों को हटाकर बनारस पर नियंत्रण पा लिया तब से वह हिंदू और मुसलमान के बीच यथास्थिति बनाए में बनाने में लगे रहे| हालांकि दोनों पक्षों में विवाद सुलगता रहा | नतीजा यह हुआ की 1809 में जब हिंदुओं ने विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच एक छोटा स्थल बनाने की कोशिश की थी तब शहर में दंगे भड़क उठे थे| फिर इस मंदिर को ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से ही जाना जाने लगा और इसका पहली बार जिक्र 1883-84 में राजस्व दस्तावेज में जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर मिलता है| 1936 में समूचे ज्ञानवापी परिसर में नमाज अदा करने के अधिकार पर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वाराणसी जिला कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया था| सन 1937 में ज्ञानवापी को एक मस्जिद के रूप में मान्यता दे दी गई| धीरे-धीरे विवाद राजनीतिक होने लगा और अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने 1959 में काशी के इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया| 1984 में विहिप ने दिल्ली में पहली बार धार्मिक संसद का आयोजन किया| इसमें उन्होंने अयोध्या काशी और मथुरा, तीनों ही मंदिरों पर दावा ठोंका | तब एक बहुत ही प्रसिद्ध नारा चला करता था “अयोध्या तो बस एक झांकी है मथुरा काशी बाकी है”| 1991 की कांग्रेस सरकार ने तब “प्लेस आफ वरशिप एक्ट 1991” लाकर सभी मंदिरों और पूजा स्थलों का भारत के स्वतंत्र होने के दिन के यथा स्थिति बनाए रखने का कानून लेकर आ गए | इसके बाद 1993 में यहां मस्जिद के अंदर हो रही पूजा पाठ पर भी तब के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम यादव ने रोक लगा दी|

सन 1991 में तीन लोगों ने वाराणसी सिविल हाई कोर्ट में पिटीशन डाला| यह पिटीशन काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी जमीन के विवाद को लेकर था| अभी साल में सिर्फ एक दिन वसंतिक नवरात्रि की चतुर्थी के दिन पूजा की अनुमति थी | हालांकि इस पिटीशन पर सुनवाई जून 1997 में शुरू हुआ और 4 माह बाद ही इस पर सुनवाई बंद हो गई | उपरोक्त 1991 का कानून ही सुनवाई पर स्टे  होने का आधार था | हालांकि यह अर्जी खारिज होने के बाद तीन बार रिव्यु पिटीशन डाला गया | जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1998 में फिर से खारिज कर दिया या यूं कहें की स्टे लगा दिया| यह स्टे बहुत सालों तक यूं ही बना रहा| सन 2018 में वकील विजय शंकर रस्तोगी इस केस में वादी बन गये| परंतु सन 2019 में सुप्रीम कोर्ट का बाबरी मस्जिद पर जो फैसला आया उसके बाद फिर से इस केस में हलचल शुरू हुई | सन 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी ने वाराणसी सिविल कोर्ट में फिर से अर्जी दाखिल की जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद फैसले का हवाला दिया था हालांकि इस पिटीशन का अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने वह सेंट्रल वर्क बोर्ड ने विरोध किया | यह अर्जी ए एस आई सर्वे के मुकाम तक पहुंचा | परंतु अप्रैल 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के ए एस आई सर्वे आदेश पर रोक लगा दिया जिसके हवाले में यह बताया गया कि यह अर्जी प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट 1991 का खिलाफत करता है| 8 अप्रैल 2021 में 5 हिंदू महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी लगाई कि वे ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मौजूद शृंगार गौरी, गणेश, हनुमान व नंदी की पूजा अर्चना करना चाहती हैं जैसा कि उन्हें पूर्व में करने दिया जाता था|  साल 2022 के 6-7 मई को अदालत द्वारा नियुक्त कोर्ट कमिश्नर के नेतृत्व में सर्वे शुरू हुआ| मुस्लिम समाज के विरोध के बाद सर्वे रोकना पड़ा| अदालत ने अगले आदेश में हर हाल में ज्ञानवापी परिसर के सर्वे करने का आदेश दिया | यह मामला आगे बढ़ा और मई 2022 को एएसआई ने अपना सर्वे स्टार्ट किया|

ज्ञानवापी मस्जिद ए एस आई सर्वे

6 मई 2022  को लगभग ढाई घंटे कोर्ट कमिश्नर के नेतृत्व में सर्वे हुआ पर 7 मई को सर्वे टीम को मुस्लिम पक्ष का विरोध के कारण सर्वे रोकना पड़ा| फिर 13 मई 2022 को एएसआई ने अपना सर्वे स्टार्ट किया| सुबह-सुबह यह सर्वे स्टार्ट हुआ| हालांकि कुछ घंटे बाद अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने कोर्ट में विरोध दर्ज करने पहुंची, जिसे खारिज किया गया और अगले दिन यानी 14 मई को फिर से सर्वे शुरू कर दिया गया | इस दिन सुबह 8:00 बजे से 12:00 बजे तक सर्वे हुआ | इसमें सभी चार तहखानों के ताले खुलवाकर सर्वे किया गया| अगले दिन 15 मई को दूसरे राउंड का सर्वे हुआ| इस दिन भी 4 घंटे का सर्वे हुआ| इस राउंड में गुंबद नमाज स्थल के साथ-साथ पश्चिमी दीवारों के वीडियोग्राफी हुए| 16 मई को आखिरी दौर का सर्वे हुआ| इस बार 2 घंटे में सर्वे का काम पूरा कर लिया गया था और इसी दिन इसी दौरान हिंदू पक्ष ने इस परिसर में शिवलिंग होने का दावा पेश किया और इस दावे के बाद कोर्ट ने शिवलिंग वाली जगह को सील करवा दिया|

मस्जिद में बहुत सारी चीजें अजीब थीं|  वहां के दीवारों पर हिंदू धर्म या मान्यताओं से संबंधित देवी देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई थी या अन्य हिन्दू संबंधित वस्तुओं के चित्र  गए थे और यह सभी इस भवन या हिस्से को हिंदू धर्म से रिश्ते को पुख्ता करते थे| दीवारों को खभों पर देवनागरी कन्नड़ और तेलुगु में शिव के नाम अंकित है| वहां जो गुंबद बनी हुई थी, ऐसा प्रतीत होता था की गुंबद के ऊपर ही एक और गुंबद बना दी गई और ऐसा लगा कि जैसे ऐसा करके एक मंदिर को मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया|  क्योंकि नीचे से देखने पर जो गुंबद की ऊंचाई दिखती थी, बाहर से वह गुंबद की ऊंचाई अलग दिख रही थी | 

साथ ही जब तहखाना को खोला गया तो यह पाया गया की सिर्फ एक व्यास जी का ही तहखाना था जो थोड़ा बहुत ठीक हालत में था| परंतु उनके तहखाने को भी कई जगह से क्षती पहुंचाई गई थी, क्योंकि आज से लगभग 31 साल पहले यहां पूजा अर्चना हुआ करती थी और तहखाना में व्यास जी के परिवार का नित्य आना-जाना होता था, परंतु मुलायम सरकार ने आज से काफी साल पहले यहां बैरिकेडिंग करवा दी और हिंदुओं का आना व पूजा करना प्रतिबंधित करवा दिया गया था | समझने वाली बात यह है की तहखाना में कई टूटी हुई मूर्तियां, खंडित मूर्तियां बेतरतीब या इधर-उधर पड़ी हुई थी| मलबे में मिले सीलापट्ट देवी देवताओं के थे और उन पर कमल के कलाकृति भी देखी जा सकती थी | उत्तर से पश्चिम की तरफ अगर चलें तो मध्य शीला पद पर कहीं शेषनाग की कलाकृति, कहीं नाग के फन जैसी आकृति दिखाई पड़ती थी| सिलापट पर कई ऊपरी हुई आकृतियां, सिंदूरी रंग की नजर आती थीं|  तहखाने में चार दरवाजे थे और उन सभी दरवाजों को नई ईट लगाकर दरारों को बंद कर दिया गया था| त्रिशूल और पान के चिन्ह की कलाकृतियां बहुत ही अधिक खुदी हुई थी| घंटियां जैसी आकृतियां भी खुदी हुई थी| 

अगर ध्यान हो तो यूपी के सीएम योगी ने एक बार या बयान दिया था कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर त्रिशूल क्या कर रहा है और वहां हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमा कैसे बनी हुई है? व्याजी के तहखाने से एक तरफ का दरवाजा चुनवा दिया गया था ईट गारे से| ऐसा लग रहा था कि तहखाने से जो रास्ता ऊपर को जा रहा था उसे रोक दिया गया था | यूं कहें कि व्यासजी के परिवार को इस तरह से अंदर आने से रोक दिया गया | कहा यह जाता है कि तहखाने से एक सीधी थी जो अंदर को जाती थी | जहां से उस तहखाना को बंद किया गया है दरअसल वह रास्ता शिवलिंग के गर्भ ग्रह हो जाता है| यानी जो कुछ बंद था उसके नीचे में, वहीं असली इतिहास है | कुछ ऐसा जो सर्वे टीम ना देख पाए इसलिए बहुत पहले से ही यह सब बंद कर दिया गया था ऐसा प्रतीत होता है | साथ ही व्यासजी के तहखाने के दीवारों में जो मूर्तियों या आकृतियां उकेरी हुई है, वह स्पष्ट दिखाई देती हैं | परंतु जो हिस्सा मस्जिद की तरफ को है, उन सभी हिस्सों में दीवारों पर, खभों पर मोटे गारे की पुताई की गई थी| ऐसा इसलिए किया गया प्रतीत होता था कि यह उभरी हुई आकृतियां इन गहरी चुने की पुताई से छुप जाए क्योंकि सर्वे टीम मस्जिद को किसी तरह से खरोच नहीं सकती थी| वह सिर्फ फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी कर सकती थी| 

ऐसा अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के लोगों के दिमाग में होगा तभी सर्वे के दौरान मस्जिद के अंदर वजूखाने की जगह पर जब सर्वे टीम ने पानी को लेकर सवाल किया तो उन्हें जवाब दिया गया कि इनमें मछलियां पाली जाती हैं | परंतु सर्वे टीम को जवाब से संतुष्टि नहीं मिली क्योंकि अमूनन किसी भी मस्जिद में इतना बड़ा प्रांगण वजूखाने के लिए नहीं होता है, जहां पे नमाज अदा करने से पहले हाथ धोते हो | इस कारण सर्वे टीम ने उस वजूखाने वाली जगह से पानी निकाल कर देखने की बात कही | इस पर मस्जिद कमेटी ने कहा कि इसमें रखी मछलियां मर जाएंगीं| फिर सर्वे टीम ने कहा कि हम मछलियों का इंतजाम कर देंगे, कोई मछली नहीं मरेगी| इसके बाद वजूखाने की जगह से पानी निकालने का काम शुरू हुआ और फिर एक रहस्य उभरता चला गया, ज्ञानवापी शिवलिंग का रहस्य जिसे हम आगे बता रहे हैं | 

25 जनवरी 2024 को ए एस आई ने अपनी रिपोर्ट वाराणसी के जिला जज को सौंप दी है |इस रिपोर्ट के मुताबिक मस्जिद से पहले नागर शैली के हिंदू मंदिर होने का उल्लेख है| इस रिपोर्ट में मंदिर का निर्माण परिकल्पना खंभों पर की गई है| रिपोर्ट के मुताबिक, मंदिर के प्रवेश, मंडप और गर्भगृह का जिक्र है | सीपीआर सर्वे में मस्जिद के मुख्य स्थान के नीचे पन्ना नुमा टूटी वस्तु मिली है | मस्जिद में जो तत्व मिले उसमें कई विग्रह पत्थर से निर्मित थे | उनमें सबसे ज्यादा 15 शिवलिंग थे, 18 मानव के मूर्तियां थी, तीन जानवरों की मूर्तियां थी और विभिन्न काल के 93 सिक्के और 113 धातु के सामने मिले थे |

ज्ञानवापी शिवलिंग 

जब वजूखाने की जगह से पूरी तरह से पानी निकाल दिया गया तब यह देखा गया कि वहां एक विशालकाय शिवलिंग की आकृति मौजूद है, जो कि लगभग ढाई फीट की थी| ऊपर के डिजाइन को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे ऊपर के हिस्से में कुछ अलग सा पत्थर चिपका हुआ है जिसमें लगभग आधे इंच सा छेद है और उसमें सिंक डालने पर 63 सेंटीमीटर इसे गहरा पाया गया| पानी का लेवल पहले इतना भरा हुआ था कि वह शिवलिंग जैसी आकृति दिख ही नहीं सकती थी| जब मस्जिद कमेटी से इस आकृति के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला कि यह एक फवारा है | सर्वे टीम ने कहा इसे चला कर दिखाइए | मस्जिद कमेटी ने कहा कि यह खराब हो गया है, पहले चलता था | फिर सर्वे टीम में सवाल किया कि इसमें मशीन कहां लगी है, वह हमें दिखाइए | फिर मस्जिद कमेटी ने उन्हें बताया कि यह बिना मशीन के चलती है| फिर सवाल उठा है कि अगर बिना मशीन के चलती है तो अभी क्यों नहीं चल रही है|

दरअसल ऐसा लग रहा था की वह शिवलिंग जैसी आकृति को बहुत बारीकी से ऊपर से छेद करने की कोशिश कभी की गई होगी, यह बताने के लिए कभी कुछ ऐसा हुआ तो यह बताया जाएगा कि यह एक फवारा है| परंतु जिसके पास भी थोड़ा दिमाग होगा वह इतना तो समझ ही जाएगा की आज से 350 साल पहले कहां फव्वारे हुआ करते थे| कौन सी मशीन का इजाद हुआ था और अगर वह मशीन थी तो कहां थी| वह दिखती क्यों नहीं|  और अगर बिना मशीन के फब्बारा चलता था तो आज चल क्यों नहीं रहा|  हालांकि यह एक बेवकूफ बनाने जैसी बातें थी| वह आकृति नंदी के मुख के बिल्कुल सामने पड रही थी | यह जगह वही था जिसका नीचे का हिस्सा उसी जगह को मिल रहा था जहां व्यास जी के तहखाना को ईंट गारे से ब्लॉक कर दिया गया था | 

ऐसा प्रतीत हो रहा था की कभी व्यास जी के तहखाना से होते हुए मंदिर के गर्भगृह में पहुंचा जा सकता था| मतलब यह हुआ की यह जगह जो अभी दिख रही थी वह तहखाने की जगह के तौर पर, दरअसल कभी वहां एक निर्माण किया गया होगा और गर्भगृह को ऐसा करके छुपा दिया गया होगा| यानी आप इसे ऐसा समझे की कभी मंदिर में एक बहुत ही विशालकाय शिवलिंग हो जो बहुत पुराना हो और वर्तमान में एक समय ऐसा आया कि आप ऊपर के लेवल पर एक निर्माण कर दो जिससे शिवलिंग का आधा हिस्सा ढक जाए और नीचे जाने के रास्ते भी बंद हो जाए | वह जगह जो शिवलिंग के ऊपर का हिस्सा दिख रहा था, कोई देख भी ले तो यह समझ नहीं पाएगा कि यह कोई असली शिवलिंग है क्योंकि उसका बेस उस फर्स के नीचे होगा जहां वह शिवलिंग दिख रहा है या जो वजूखाने की जगह कही जा रही है|  यानी इसे ऐसे समझे की जिस वजूखाने की जगह सर्वे टीम खड़ी थी अगर उस वजूखाने की फर्श को हटा दिया जाए तो उसके नीचे क्या दिखेगा, एक पुराना शिव मंदिर, एक विशालकाय शिवलिंग का स्थान जिसको देख रहे हैं नंदी महाराज | जिसके बगल में है व्यास जी का तहखाना | 

कुछ और तहखाने भी थे जो गरद और मलबे  से पटे हुए थे | यानी ऐसा लगता है कि मंदिर तोड़ने और मस्जिद निर्माण के बाद जो चीज फालतू लगी, वह सब यही नीचे दबा दिया गया | एक तहखाने को तो ऐसा बताया गया कि उस तहखाने की चाबी पुलिस या सेना के पास है और वह हीं उसे इस्तेमाल करते हैं| हालांकि जिस वक्त इस शिवलिंग का सर्वे टीम ने पहचान किया कोर्ट ने उसी वक्त उस जगह को सील करवा दिया और अब यह जगह कोर्ट के निगरानी में है| पुलिस वहां पहरा देती है | ए एस आई सर्वे टीम ने बाद में अपनी रिपोर्ट पेश की| वह रिपोर्ट शिवलिंग वाले जगह के अलावा बाकी जगह की सच्चाई को उजागर करती है| हालांकि शिवलिंग वाले हिस्से का रिपोर्ट सार्वजानिक नहीं किया गया है | यह शायद इसलिए किया गया होगा की कोर्ट अभी एकदम से किसी विवाद में आने से बचना चाहती है|

बहुत हैरानी की बात है कि यह सब कुछ हिंदू धर्म को दबाने के लिए मुग़लों एक सोची समझी साजिश थी और आज भी कुछ लोग उनके किए गए गलत कृत्य को सही साबित करने में लगे हुए हैं| क्या यह उचित नहीं होगा की जो इतिहास में हमसे गलतियां हुई हैं हम आज उसको सुधार लें| इसमें बुराई हीं क्या है? इसमें अच्छाई क्या है कि हम एक मंदिर को मस्जिद बना दें और कहें  की वह मस्जिद ही है| अच्छा तो यह होगी की जो हमारे पूर्वजों में गलती की है आज की जेनरेशन उन गलतियों को ना दोहराते हुए एक समझौते की ओर अपने कदम आगे बढ़ाएं और आपसी भाईचारे का मिसाल पेश करें|

ज्ञानवापी मस्जिद कार्बन डेटिंग 

ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग जैसी आकृति जिसे काशी विश्वनाथ का शिवलिंग भी कहा जा रहा है, को कार्बन डेटिंग के माध्यम से पहचान करने की मांग की गई है | हालांकि जिन पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी पूजा के लिए अर्जी लगाई थी उनमें से चार महिलाएं तो इस शिवलिंग जैसे आकृति का कार्बन डेटिंग करने के लिए तैयार हुई परंतु एक पांचवीं महिला ने कार्बन डेटिंग करने के खिलाफ गई| उनका कहना था कि इससे अद्वितीय शिवलिंग को नुकसान होगा, इस कारण से हमें इसकी कार्बन डेटिंग से बचना चाहिए|

ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी कोर्ट 

2019 में विजय शंकर रस्तोगी ने जो पेटीशन डाली तब वाराणसी सिविल जज ने एएसआई को ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया था| हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था | बाद में अगस्त 2021 में पांच हिंदू महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में पेटीशन डाली शृंगार गौरी की पूजा के अधिकार के लिए | उसके बाद वाराणसी कोर्ट की भूमिका बहुत बढ़ गई थी| मई 2022 मे वाराणसी कोर्ट ने पांचो महिलाओं की अर्जी सुनना शुरू किया और फिर सर्वे का काम भी शुरू हुआ| फिर सर्वे पर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय के लिए रोक लगा दी थी| हालांकि 6 मई से लेकर 16 मई तक में सर्वे का काम पूरा हो गया था| फिर से जुलाई 2023 में ए एस आई को वैज्ञानिक परीक्षण की अनुमति मिली | सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग वाले एरिया को सुरक्षित रखने का आदेश दिया था| हालांकि एक दूसरे कोर्ट ने इस परिसर का वीडियो ग्राफी करने का आदेश दिया | 18 दिसंबर 2023 को एएसआई ने अपनी सर्वे रिपोर्ट वाराणसी डिस्टिक कोर्ट को प्रस्तुत कर दी थी|

कोर्ट के आदेश पर ही 25 जनवरी 2024 को ए एस आई ने अपनी रिपोर्ट हिंदू व मुस्लिम पक्ष को सौंप दिया| रिपोर्ट के आधार पर हिंदू पक्ष ने 31 साल पूर्व शृंगार गौरी पूजा की जो स्थिति थी, वह वापस कायम करने की मांग रखी| हिंदू पक्ष ने व्यासजी के तहखाने को भी खोलने की मांग रखी| 31 जनवरी 2024 के दिन वाराणसी कोर्ट ने इस पर अपना फैसला दिया और 31 साल पहले लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया| हिन्दुओ को पूजा पाठ मे कोई दिक्कत न आये, इसके लिए जवाबदेह जिलाधिकारी को बनाया गया | 31 जनवरी के आधी रात से ही वहां पूजा अर्चना भी शुरू हो गई| यह गौर करनेवाली बात है कि यह फैसला सुनाते समय जज का लास्ट वर्किंग दिन था और अगले दिन वह रिटायर हो गए|

चर्चा में आजकल अयोध्या के बाद काशी और मथुरा की मस्जिद भी हैं और यह तीन मंदिर ऐसे हैं जिनकी पूरे देश में चर्चा हो रही है और हिन्दू पक्ष यह चाहता  है कि  देश के यह तीनों मंदिर अनब्लॉक होने चाहिए| अयोध्या अनलॉक हो चुका है| काशी अनलॉक होने के प्रक्रिया में है और अब अगला नंबर लोग चाहते हैं कि मथुरा का हो | इन मस्जिदों के नीचे मंदिर मौजूद थे, उसके साक्ष्य आज मिले हैं| सैकड़ो वर्ष पहले भी यह साक्ष्य मौजूद थे और यह साक्ष्य किसी ने बनाकर इन मस्जिदों के नीचे रख नहीं दिए | लेकिन तब इन साक्ष्य की इसलिए बात नहीं होती थी क्योंकि उस समय हमारे देश में एक ऐसा राजनीतिक इकोसिस्टम था जिसमें मस्जिदों के स्थान पर मंदिर होने की बात करना भी एक अपराध माना जाता था| 31 वर्ष पहले तो इस जगह पर पूजा पाठ ही बंद कर दिया था तो उस समय आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि अगर कोई सबूत लेकर भी चला जाए तो उसकी कोई सुनवाई होगी | वरना यही साक्ष्य पहले भी मौजूद थे, लेकिन उस इकोसिस्टम में सरकारों के पास सबूत को जुटाने का वैसा कनविक्शन नहीं था| तब भी अदालत थी, आज भी अदालत है | लेकिन अदालत फैसला किस आधार पर सुनाएं| अदालत के सामने जब कोई जाएगा और साक्ष्य प्रस्तुत करेगा तभी तो अदालत फैसला सुनाएंगे | पक्षकार जब ठीक से अपना पक्ष अदालत के सामने रखेगा तभी तो अदालतें फैसला सुनाएगी| इससे पहले पक्षकारों को अदालत तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता था |  इन सबूतों तक कोई पहुंच नहीं पता था, ना ही कोई सर्वे करने की इजाजत मिलती थी, ना सबूत को इकट्ठा करने की इजाजत मिलती थी| और उस साईट से ही लोगों को दूर रखा रखा जाता था तो साक्ष्य मिलेंगे कहां से? जब यह सर्वे हुए और एएसआई ने जब इतने सारे सर्वे किया तो जो सच है वह लोगों के सामने आ गया | अब यह साक्ष्य अदालत तक पहुंच पा रहे हैं इसलिए अदालतें न्याय के आधार पर यह फैसला दे रही हैं | अब काशी के मामले में अदालत का जो फैसला आया है, वह फैसला इस केस में एक बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है| इस देश के राजनीति में भी, इस देश के इतिहास में भी, एक बहुत बड़ा ट्रेनिंग प्वाइंट साबित होगा क्योंकि हिंदू पक्ष जो लगातार कई सौ वर्षो से जो बात कहता रहा है वह आखिरकार सच निकली  हैं|

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