कर्पूरी ठाकुर : मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार

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कर्पूरी ठाकुर : मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार पाने वाले हैं | उन्हें जननायक के तौर पर भी जाना जाता है|वे मुख्यमंत्री रहे हैं बिहार के, दिसंबर 1970 से जून 1971 तक सोशलिस्ट पार्टी भारतीय क्रांति दल से और फिर दोबारा जनता पार्टी की तरफ से जून 1977 से अप्रैल 1979 तक | 24 जनवरी 2024 को उनकी जन्म सती मनाई जानी थी, उससे ठीक 1 दिन पहले भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने का ऐलान किया| यह एक ऐतिहासिक ऐलान है| उन्हें 26 जनवरी 24 को भारत रत्न प्रदान किया जाएगा|

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कर्पूरी ठाकुर :एक परिचय 

कर्पूरी ठाकुर बिहार के एक बहुत बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं | अगर लोकनायक जयप्रकाश नारायण को कहा जाता है तो जननायक का नाम कर्पूरी ठाकुर को दिया हुआ है |आपको बता दे कि बिहार का पितौंझिया(वर्तमान मे कर्पूरी ग्राम) उनका गांव था | राष्ट्रवादी सोच के साथ वह आगे बढ़े थे| क्विट इंडिया मूवमेंट यानी भारत छोड़ो आंदोलन में भी वह हिस्सा बने| भारत की आजादी में वह 26 महीने जेल में रहे |भारत की आजादी के बाद एक शिक्षक के रूप में गांव के स्कूल में उन्होंने काम किया और फिर पहली बार 1952 में ताजपुर विधानसभा से वह बिहार के विधानसभा पहुंचे | तब वह सोशलिस्ट पार्टी के कैंडिडेट थे| कई बार उन्हें जेल भी भेजा गया और अंत मे  वह उपमुख्यमंत्री बने और फिर बिहार के पहले नॉनकांग्रेस सोशलिस्ट मुख्यमंत्री बने| उन्हें जननायक माना जाता है| मोदी सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान 23.01.24 को किया है| माननीय मोदीजी ने X पर स्वयं पर ट्वीट किया है | आपको बता दे  कि कर्पूरी ठाकुर की पूरी राजनीतिक विरासत को बिहार की राजनीति में हमेशा याद की जाती है| 

 

कर्पूरी ठाकुर : जन्म व युवाकाल 

कर्पूरी ठाकुर का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव में ( जिसे अब कर्पूरी ग्राम कहा जाता है) 24 जनवरी  1924 को हुआ था| उनके पिता का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माताजी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था | पारिवारिक व्यवसाय खेती बाड़ी थी| उनका जीवन काल 24 जनवरी 1924 से 17 फरवरी 1988 तक का है| उनके ग्रेजुएशन के वक्त भारत में भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था | उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई छोड़ दी और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए| वे कई बार जेल गए और पूरी तरह राजनीति में आने से पहले 26 माह जेल में गुजार चुके थे | उन पर महात्मा गांधीजी व सत्यनारायण सिन्हा का खास असर माना जाता है| धीरे-धीरे कर्पूरी ठाकुर राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल होने लगे | उन्हें जिम्मेदारियां दी जाने लगी और इसी के बदौलत 1952 में सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से बिहार के विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए|

 

कर्पूरी ठाकुर किस जाति से आते हैं? 

कर्पूरी ठाकुर बिहार के नाई समाज से आते हैं| इसलिए कर्पूरी ठाकुर को पिछड़ों का मसीहा व पिछड़ों की आवाज कहा जाता है| उन्होंने गरीब, दलित और वंचितों की आवाज को आगे किया | उनकी आवाज को बोल दिया और जब वह सत्ता में रहे तब उन्होंने गरीब, शोषितों, दलितों को मजबूत करने का काम किया | इस कारण से ही उन्हें जननायक भी कहा जाता है| 

 

कर्पूरी ठाकुर: राजनीतिक जीवन परिचय

ग्रेजुएशन करने के दौरान कर्पूरी ठाकुर ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन से जुड़ गए और बाद में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और भारत छोड़ो आंदोलन में पूरी तरह से संलिप्त हो गए | आजादी के बाद वह गांव में ही पढ़ाने लगे |

कर्पूरी ठाकुर पहली बार 1952 में सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से बिहार विधानसभा के लिए मनोनीत हुए या निर्वाचित हुए| कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री रहे हैं| वह एक बार उपमुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं| पहली बार कर्पूरी ठाकुर उपमुख्यमंत्री 5 मार्च 1967 से 31 जनवरी 1968 तक रहे, उस वक्त महामाया प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे| इस वक्त उन्हें शिक्षा मंत्री का भी पद मिला हुआ था| अपने शिक्षा मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा से इंग्लिश विषय को कंपलसरी विषय से हटा दिया | उनका मानना था कि बिहार के गरीब परंतु होनहार युवा छात्र इंग्लिश में कमजोर होने के कारण अपनी प्रतिभा को खो देते हैं और वह फेल हो जाते हैं| इस कारण वह राष्ट्र निर्माण में नहीं लग पाते हैं | यह उनकी दूरदर्शिता थी कि उन्होंने हिंदी को आगे बढ़ाया और इंग्लिश न जानने वाले छात्रों के लिए भी शिक्षा के नए आयाम खोले|

कर्पूरी ठाकुर 1970 में बिहार के 11 में मुख्यमंत्री बने और तब गैर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से 22 दिसंबर 1970 से लेकर 2 जून 1971 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे| फिर जयप्रकाश नारायण और  लोहिया का इमर्जेंसी के खिलाफ आंदोलन चला| 1970 के दशक में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू की थी और तब वह वक्त था जब पूरे देश में जयप्रकाश नारायण और लोहिया इमरजेंसी के खिलाफ उठ खड़े हुए थे| जनता उनके पीछे थी| कर्पूरी ठाकुर भी अग्रणी नेताओं में थे जो इमरजेंसी का खिलाफत कर रहे थे| 1970 में उन्होंने 28 दिनों तक की भूख हड़ताल की थी| यह भूख हड़ताल थी टेल्को लेबर के सपोर्ट में| 

1977 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के फिर से मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए| उनका कार्यकाल 24 जून 1977 से लेकर 21 अप्रैल 1979 तक रहा| उन्होंने तब जगन्नाथ मिश्रा के बाद मुख्यमंत्री का पद संभाला था| इस कार्यकाल में उन्हें कार्य अवधि के बीच में ही हटा दिया गया तथा रामसुंदर दास को मुख्यमंत्री बना दिया गया| तब का उनका कार्यकाल जनता पार्टी का कार्यकाल था| इस वक्त उनके मुख्य कार्य में मुंगेरीलाल कमिशन रिपोर्ट पर उनके काम के लिए जाना जाता है| उन्होंने तब रिजर्वेशन पास करवाया था और यह उनकी ही दूरदर्शिता थी कि उस वक्त के कार्यकाल में भी उन्होंने महिलाओं के लिए 3% आरक्षण तथा उच्च जाति के गरीब वर्ग के लिए भी 3% का आरक्षण की बात कही थी| हालांकि तब वह बातें नहीं मानी गई परंतु उनकी वह दूरदर्शिता ही थी जो आज हमारे नेता उस फार्मूले को या उस विचार को लागू करवा रहे हैं| कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल, जनता पार्टी और लोकदल जैसे पार्टियों के कर्ताधर्ता रहे हैं|

कर्पूरी ठाकुर अपने जुझार विचारों तथा जमीन से जुड़े नेता के रूप में जाने जाते हैं| आज जब कुछ प्रदेश शराब बंदी जैसे ठोस कदम उठा रहे हैं तब कर्पूरी ठाकुर पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में शराबबंदी लागू कर दी थी| वे समय से आगे के नेता थे | वह सच्चे अर्थों में गरीब, दुर्बल, निर्धन, दलित व शोषित वर्ग  के सच्चे नेता थे| जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण यह चाहते थे की इमरजेंसी के बाद के हुए आंदोलन के बाद सभी नेता अपने पद से त्यागपत्र दे दे, तब कर्पूरी ठाकुर ने अपने पद से त्यागपत्र देकर के एक मिसाल पेश की थी| सन 1988 में उनका निधन हो गया| वे सदा के लिए हमें अलविदा कह गए| भारत सरकार ने 1991 में उनके नाम का एक डाक टिकट जारी किया था| उनके नाम से जननायक ट्रेन भी चलती है जो दरभंगा से अमृतसर का सफर तय करती है| हमें जरूरत है कि आज ऐसे ही नेता हर गली, हर मोहल्ले हर शहर से निकलकर हमारे देश को एक नई ताकत दे |

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